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मकर संक्रांति के हैं विभिन्न नाम, जानें पर्व से जुड़ी परंपरा और मनाने के तरीके

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नई दिल्ली : हर क्षेत्र में इसे अपने पारंपरिक अंदाज में मनाया जाता है, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है। आइए जानते हैं देशभर में मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग तरीके से कैसे मनाते हैं। मकर संक्रांति को किन नामों से जाना जाता है और इसे मनाने की परंपरा क्या है।

संक्रांति का पर्व देश के प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है जो कि अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक साल के पहले महीने में मनाया जाता है। इसे साल का पहला हिंदू प्रमुख त्योहार भी मान सकते हैं। मकर संक्रांति का पर्व वैसे तो लगभग पूरे देश में ही मनाया जाता है लेकिन इसे राज्यों के मुताबिक, लोग अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाते हैं। यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और दिन के बढ़ने की शुरुआत का प्रतीक है। मकर संक्रांति का पर्व मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाता है। इस दिन को उत्तर प्रदेश में खिचड़ी के पर्व के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन नई फसल से खिचड़ी और गुड़, तिल और मूंगफली के लड्डू बनते हैं।

मकर संक्रांति न केवल फसल कटाई का त्योहार है बल्कि यह सूर्य की उत्तरायण गति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक भी है। हर क्षेत्र में इसे अपने पारंपरिक अंदाज में मनाया जाता है, जो भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है। आइए जानते हैं देशभर में मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग तरीके से कैसे मनाते हैं। मकर संक्रांति को किन नामों से जाना जाता है और इसे मनाने की परंपरा क्या है।

पर्व से जुड़ी परंपराएं और मनाने के तरीके

राज्यों के मुताबिक मकर संक्रांति के कई नाम है। जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे मकर संक्रांति ही कहते हैं। वही पंजाब-हरियाणा में लोहड़ी का पर्व मनाते हैं। असम में भोगाली बिहू तो गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण का पर्व मनाते हैं। तमिलनाडु में पोंगल, महाराष्ट्र में तिलगुल पर्व, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में संक्रांति, केरल में मकरविलक्कू और जम्मू कश्मीर में उत्तरायणी कहते हैं।

गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण का पर्व

यहां उत्तरायण के मौके पर पतंगबाजी का आयोजन होता है। लोग छतों पर चढ़कर पतंग उड़ाते हैं और इसे एक बड़े उत्सव की तरह मनाते हैं। उत्तरायण को प्रकाश का समय माना जाता है। इस दिन सूर्य देव की किरणें ज्यादा देर तक पृथ्वी पर चमकती हैं। इसे देवताओं का दिन माना जाता है। इस दिन यज्ञ, दान और मांगलिक कार्यों का विधान है।

महाराष्ट्र और उत्तर भारत का पर्व

महाराष्ट्र में तिलगुल पर्व के मौके पर तिल और गुड़ से बनी मिठाइयां खाई और बांटी जाती हैं। इस दिन तिल और गुड़ के लड्डू भी बनते हैं। महाराष्ट्र में एक कहावत भी है, “तिलगुन घ्या, गोड गोड बोला” यानी तिलगुल खाओ और मीठा बोलो।

पंजाब-हरियाणा की लोहड़ी

लोहड़ी के दिन आग जलाकर उसमें तिल, गुड़, मूंगफली और रेवड़ी अर्पित की जाती है। मान्यता है कि किसान नई फसल को अग्नि में अर्पित करके भगवान का आभार व्यक्त करते हैं। फिर उसी अग्नि की ताप लेते हैं और भांगड़ा-गिद्दा कर नाचते-गाते हैं। लोहड़ी का पर्व रबी की फसलों की कटाई का प्रतीक है। साथ ही सर्दियों के दिनों के अंत का प्रतीक भी हैं। फसल पकने और अच्छी खेती के लिए पर्व को समर्पित किया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य और अग्नि देव की पूजा की जाती है।

तमिलनाडु का पोंगल पर्व

नए धान की फसल से चावल पकाया जाता है, जिसे पोंगल कहते हैं। ये चार दिन का पर्व होता है, जिसमें सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। पोंगल का पर्व भी फसल कटाई के बाद संपन्नता और खुशी का प्रतीक है। इस दिन किसान प्रकृति, ईश्वर, सूर्य व इंद्र देव और मवेशियों का आभार प्रकट करते हैं। समृद्धि के लिए वर्षा, धूप और कृषि से जुड़ी चीजों की पूजा की जाती है।