नई दिल्ली:– चीन और रूस ने चांद पर न्यूक्लियर पावर प्लांट्स बनाने के लिए एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की है, जो ग्लोबल लेवल पर स्पेस रेस को एक नई दिशा दे सकती है. यह प्लांट 2036 तक पूरा होने की उम्मीद है और इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन (ILRS) को ताकत देगा. यह प्रोजेक्ट दोनों देशों के बढ़ते अंतरिक्ष सहयोग और टेक्नोलॉजी डोमिनेंस की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है, जो फ्यूचर की स्पेस खोजों के लिए बेस तैयार करेगी.
यह घोषणा ऐसे वक्त में की गई है जब अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने 2026 के बजट प्रस्ताव में चंद्रमा पर अपने Planned Orbital Station को रद्द करने की बात कही है, जबकि इसका आर्टेमिस प्रोग्राम, जिसका मकसद लगभग पांच दशकों के बाद अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर वापस भेजना है.
चीन-रूस चंद्र परमाणु ऊर्जा संयंत्र ILRS
रिपोर्टों के मुताबिक, चीन और रूस ने हाल ही में चंद्रमा के साउथ पोल पर इंसानों के लिए एक स्थायी बेस बनाने और एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर साइन किए हैं, जो बेस और ILRS को ताकत देगा. यह एक क्रांतिकारी परियोजना है, जिसे वैज्ञानिकों ने लॉन्ग टर्म के लिए डिज़ाइन किया है, इसमें चंद्रमा पर फ्यूचर में इंसानों की मौजूदगी की संभावना भी शामिल है.
कब से शुरू होगा निर्माण का काम?
रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस के डाइरेक्टर यूरी बोरिसोव ने कहा कि न्यूक्लियर प्लांट का निर्माण ‘इंसान के मौजूदगी के बिना’ किया जाएगा. उन्होंने संकेत दिया कि उन्नत रोबोट चंद्र सतह पर निर्माण का काम करेंगे. हालांकि, बोरिसोव ने इस तरह की कोशिश के लिए जरूरी तकनीक के बारे में कोई जानकारी नहीं दी. लेकिन उन्होंने कहा कि सभी तैयारियां
पहले से लगभग तैयार है. रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्र परमाणु संयंत्र का निर्माण 2030 और 2035 के बीच शुरू होने वाला है और 2036 तक पूरा होने की उम्मीद है. ILRS की आधारशिला 2028 में चीन के चांग’ए-8 मिशन के साथ रखी जाएगी, जो चंद्रमा पर उसका पहला मानवयुक्त मिशन होगा.
ILRS मिशन क्या है और यह गेमचेंजर क्यों है?
इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन (ILRS) चीन और रूस द्वारा संयुक्त रूप से संचालित एक महत्वाकांक्षी परियोजना ( Ambitious project ) है, जिसका मकसद वैज्ञानिक रिसर्च करने के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर इंसानों के लिए एक आधार स्थापित करना है. जून 2021 में पहली बार मास्को और बीजिंग ने इसका ऐलान किया था, इसमें अब पाकिस्तान, मिस्र, वेनेजुएला, थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका समेत 17 अन्य देश शामिल हैं.
आईएलआरएस का निर्माण 2030 से 2035 तक पांच सुपर हेवी-लिफ्ट रॉकेट प्रोजेक्शन्स के जरिए से भेजी गई मैटेरियल्स का इस्तेमाल करके किया जाएगा और स्टेशन को 2050 तक एक्सटेंड करने की योजना है, जिसमें एक ऑर्बिटल स्पेस स्टेशन चंद्रमा के भूमध्य रेखा और उसके दूर के हिस्से पर दो नोड्स शामिल होंगे. खास बात यह है कि लूनर स्पेस स्टेशन को सौर, रेडियो आइसोटोप और परमाणु जनरेटर द्वारा संचालित किया जाएगा. और इसमें चंद्रमा-पृथ्वी और चंद्र सतह चंद्र वाहन और मानवयुक्त रोवर्स पर उच्च गति संचार नेटवर्क की सुविधा होगी.
आईएलआरएस का मकसद चंद्रमा पर रिसर्च और बगैर इंसानों के लॉन्ग टर्म के लिए मानव को प्रमुख तकनीकी आधार मुहैया करना है, तथा मंगल ग्रह पर मानवयुक्त मिशन के लिए आधार के रूप में काम करना भी है.
चीन का तेजी से बढ़ता स्पेस प्रोग्राम्स
खास तौर पर, चीन ने पिछले दशक में अपने स्पेस प्रोग्राम्स को तेजी से एडवांस्ड किया है. 2013 के चांग’ई-3 मिशन में अपना पहला चंद्र रोवर उतारा था. तब से, बीजिंग ने चंद्रमा और मंगल पर कई रोवर भेजे हैं, चंद्रमा के पास और दूर के हिस्सों से नमूने इकट्ठे किए हैं. साथ ही, चंद्र सतह नक्शा भी तैयार किया है.
चीन के चांग ’ए-8 मिशन का टारगेट 2030 तक चीनी एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर उतारना है, क्योंकि बीजिंग स्पेस रिसर्च और मिशन में अपने प्रतिद्वंद्वी अमेरिका की जगह ग्लोबल लीडर के रूप में अपनी जगह पक्की करना चाहता है
