आखिर क्यों वेश्यालय के आंगन की मिट्टी से बनाई जाती हैं मां दुर्गा की मूर्ति?

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नई दिल्ली : शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 03 अक्तूबर से हो चुकी है और इसका समापन 12 अक्तूबर विजयादशमी को होगा। शारदीय नवरात्रि के 9 दिन आदिशक्ति मां भगवती की पूजा के लिए समर्पित हैं। दुर्गा पूजा के दौरान मंदिर, बड़े-बड़े पूजा पंडाल और घर-घर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है और पूरे 9 दिन भक्ति-भाव से पूजा की जाती है। नवरात्रि के एक महीने पहले से ही मां दुर्गा की प्रतिमाएं बनना शुरु हो जाती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुर्गा पूजा के लिए मां दुर्गा जो मूर्ति बनाई जाती है, उसमें वेश्यालय के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा क्यों किया जाता है चलिए जानते हैं इसके पीछे कौन सी मान्यता प्रचलित है।

वेश्या से सिर झुकाकर मिट्टी मांगना नारी शक्ति का सम्मान
ऐसा माना जाता है कि यदि वेश्यालय के प्रांगण की भूमि का उपयोग मां दुर्गा की मूर्ति के लिए नहीं किया जाता है, तो मूर्ति अधूरी मानी जाती है। जब कोई पुजारी या मूर्तिकार किसी वेश्यालय में मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी मांगने जाता है, तो उसका मन अतिरिक्त रूप से शुद्ध और ईमानदार होना चाहिए। साथ ही वेश्या से सिर झुकाकर सम्मानपूर्वक मिट्टी मांगी जाती है। इसके बाद यदि वेश्या अपने आंगन से मिट्टी दान करती है तो उससे मां दुर्गा की मूर्ति बनाई जाती है और मूर्ति पूर्ण मानी जाती है।वेश्याओं के आगे सिर झुकाना इस बात का संदेश देता है कि नारी शक्ति के रूप में उन्हें भी समाज में बराबरी का दर्जा दिया गया।

क्यों शुद्ध मानी जाती है वेश्यालय की मिट्टी
घर की महिला को लक्ष्मी स्वरूपा माना जाता है। गृहलक्ष्मी स्वयं लक्ष्मी के स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसे में अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर वेश्या के पास जाता है तो उसके सारे पुण्य कर्म उसके आंगन में ही छूट जाती है। इस प्रकार वेश्या के आंगन की मिट्टी पवित्र हो जाती है।

आंगन की मिट्टी के साथ ये चीजें भी हैं जरूरी
दुर्गा पूजा के लिए मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय की मिट्टी और अन्य चीजों की जरूरत होती है जो मूर्ति बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इन सबके बिना भी मूर्ति पूर्ण नहीं होती। मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्यालय की मिट्टी के अलावा, गंगा के किनारे की मिट्टी, गोमूत्र और गाय के गोबर का भी उपयोग किया जाता है। इन चीज़ों का उपयोग मूर्तियां बनाने में करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।