कब और कैसे होता है तुलसी विवाह? इस दिन रखें पांच बातों का खास ध्यान

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नई दिल्ली : तुलसी विवाह दीपावली के बाद आने वाली पहली एकादशी तिथि को मनाया जाता है। ये पर्व न केवल तुलसी के पौधे के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि इसे पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक भी माना जा सकता है।

त्योहारों के मौसम में कई छोटे-बड़े पर्व मनाए जा रहे हैं। दीपावली और छठ पूजा पूरे देश में धूमधाम से संपन्न हुई। वहीं दीपावली के बाद तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। तुलसी विवाह एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जिसमें तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह संपन्न कराया जाता है। तुलसी विवाह दीपावली के बाद आने वाली पहली एकादशी तिथि को मनाया जाता है। ये पर्व न केवल तुलसी के पौधे के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि इसे पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक भी माना जा सकता है।

कब है तुलसी विवाह?

हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। इस साल 12 नवंबर 2024 को तुलसी विवाह का त्योहार है। इस दिन देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी भी होती है, जो भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा से जागने का दिन माना जाता है। इस दिन को अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है, और इसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है।

पौराणिक कथा

तुलसी विवाह की पौराणिक कथा प्रचलित है। देवी तुलसी का जन्म पृथ्वी पर वृंदा के रूप में हुआ था। वृंदा एक असुर राजकुमारी थीं और उन्होंने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। वृंदा का विवाह जालंधर नामक असुर से हुआ, जो शक्ति और पतिव्रता धर्म के कारण अजेय था। देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने जालंधर का वध किया और इसके बाद वृंदा ने विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर में परिवर्तित हो जाएंगे। बाद में भगवान विष्णु ने वृंदा को तुलसी का रूप दे दिया और कहा कि उनका विवाह शालिग्राम के रूप में उनसे ही होगा। तब से तुलसी विवाह की परंपरा का आरंभ हुआ।

तुलसी विवाह कैसे मनाया जाता है?

तैयारी और सजावट

तुलसी विवाह से पहले तुलसी के पौधे को एक सुंदर गमले या बर्तन में सजाया जाता है। पौधे को विवाह के लिए तैयार किया जाता है और दुल्हन की तरह सजाया जाता है। रंग-बिरंगी चुनरी, श्रृंगार की सामग्री, फूलों की माला और कागज के आभूषण तुलसी के पौधे पर सजाए जाते हैं। वहीं भगवान शालिग्राम की मूर्ति को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है।

भोग और प्रसाद वितरण

विवाह की रस्में पूरी होने के बाद तुलसी जी को विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाई और विशेष प्रसाद अर्पित किया जाता है। तुलसी विवाह के प्रसाद में विशेष रूप से शुद्ध और सात्विक खाद्य पदार्थ होते हैं। बाद में यह प्रसाद सभी भक्तों में वितरित किया जाता है।

तुलसी विवाह के दौरान रखें इन पांच बातों का ध्यान
शादी में लाल रंग का जोड़ा बहुत शुभ माना जाता है। तुलसी जी के विवाह में भी लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। लोक मान्यता है कि माता तुलसी सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद देंगी और परिवार में खुशहाली बनी रहेगी।
तुलसी विवाह में तिल का उपयोग करें। माता तुलसी का पौधा जिस गमले में लगा हो, उसमें शालिग्राम भगवान को रखें और फिर तिल चढ़ाएं।
तुलसी जी और शालिग्राम महाराज पर दूध में भीगी हल्दी को लगाएं। तुलसी विवाह की पूजा में इसे शुभ माना जाता है।
तुलसी विवाह के दौरान तुलसी के पौधे की 11 बार परिक्रमा करनी चाहिए। इससे वैवाहिक जीवन में खुशहाली बना रह सकती है।
तुलसी विवाह में शुद्ध और सात्विक भोग अर्पित करें