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पितरों के लिए स्वर्ग की सीढ़ी मानी जाती है यह जगह, पिंडदान के लिए जाएं

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नई दिल्ली : जहां अन्य तीर्थ स्नान और दान कर्ता का कल्याण करते हैं, वहीं तीर्थों का राजा प्रयागराज न केवल स्नान, दान करने वाले व्यक्ति का कल्याण करता है, वरन उनके पूर्वज पितृगण के निमित्त त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने पर उन्हें भी मुक्ति प्रदान करता है। तीर्थराज प्रयागराज में श्राद्ध आदि कर्म करने पर कई पीढ़ियों का उद्धार होता है।

ज्योतिषाचार्य

प्रयागराज को तीर्थराज माना जाता है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन का त्रिवेणी संगम क्षेत्र अक्षय कहलाता है। इसे पितृ मुक्ति के लिए स्वर्ग की सीढ़ी कहा जाता है। तीर्थों के राजा तीर्थराज प्रयागराज की महिमा अद्भुत है। आस्था की नगरी में प्रतिवर्ष असंख्य श्रद्धालु दूर-दराज से आकर भिन्न-भिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए त्रिवेणी संगम में पुण्य की डुबकी लगाकर दान-पुण्य कर्म करते हैं। जहां माघ मास में संगम स्नान का अक्षय पुण्य फल प्राप्त होता है, वहीं आश्विन मास पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध आदि कर्मों के निमित्त संगम क्षेत्र का महत्व सर्वाधिक है।

गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन का त्रिवेणी संगम क्षेत्र अक्षय कहलाता है। अक्षय का अभिप्राय संगम क्षेत्र में किए जाने वाले दान-पुण्य कर्म से है, जो जन्म-जन्मांतरों तक संचित होकर अक्षय पुण्य प्रदान करता है। इसलिए श्रद्धालु पितरों की मुक्ति के लिए पितरों के नाम की डुबकी भी त्रिवेणी संगम में लगाते हैं।

तीर्थों के राजा प्रयागराज के संगम में डुबकी लगाने से मिलेगी मुक्ति

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, जहां अन्य तीर्थ स्नान और दान कर्ता का कल्याण करते हैं, वहीं तीर्थों का राजा प्रयागराज न केवल स्नान, दान करने वाले व्यक्ति का कल्याण करता है, वरन उनके पूर्वज पितृगण के निमित्त त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने पर उन्हें भी मुक्ति प्रदान करता है। तीर्थराज प्रयागराज में श्राद्ध आदि कर्म करने पर कई पीढ़ियों का उद्धार होता है।

त्रिवेणी संगम में श्राद्ध का महत्व

भारतीय वांग्मय में तीर्थ का अभिप्राय उस क्षेत्र से है, जहां जाने पर पवित्रता का संचार हो, पुण्य का संचय हो, पापों का नाश हो और मोक्ष की प्राप्ति हो। ये सब प्रयागराज के संगम क्षेत्र पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की गोद में सर्वसुलभ है। गीता में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, जो दान अथवा जप-तप मनुष्य करता है, अगर वह सब कुछ श्रद्धा सहित नहीं किया गया तो वह असत्य है। वह न इस लोक में लाभदायक है, न मृत्यु के बाद परलोक में। इसलिए तीर्थों के राजा प्रयागराज के त्रिवेणी संगम क्षेत्र में श्रद्धा पूर्वक पितरों के निमित्त किया गया कोई भी कर्म अक्षय पुण्य अर्जित कर मोक्ष का कारण बनता है।

तीर्थ क्षेत्र में किया गया पुण्य व्यक्ति के अदृश्य पुण्य के खाते में जमा हो जाता

तीर्थ क्षेत्रों में किया गया श्राद्ध आदि कर्म, पूजा-पाठ का फल इस प्रकार समझना चाहिए, जैसे मनुष्य लौकिक जीवन में धन अर्जित कर अपने बैंक अकाउंट में जमा करता है, उसी प्रकार तीर्थ क्षेत्र में किया गया पुण्य व्यक्ति के अदृश्य पुण्य के खाते में जमा हो जाता है। जब कभी अरिष्ट ग्रहों के कारण जीवन में संकट के बादल मंडराने लगते हैं तो यही संचित पुण्य बल की ऊर्जा व्यक्ति को रोग-शोक, विनाश से बचाती है। श्राद्ध पक्ष में संगम तट पर पितरों के निमित्त किया गया पिंडदान, तर्पण अथवा कोई भी पुण्य कार्य, दिवंगत व्यक्ति की संतान द्वारा अर्जित पुण्य के माध्यम से पितरों तक पहुंचता है।

स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, बंधन-मोक्ष, आत्मा-पुनर्जन्म का भी अस्तित्व

जब जीवन है तो मृत्यु भी है। इसी प्रकार भले ही हम मानें अथवा न मानें, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, बंधन-मोक्ष, आत्मा-पुनर्जन्म का भी अस्तित्व है। मानव बुद्धि की क्षमता और अनुभव से परे ब्रह्मांड की संरचना आध्यात्मिक विज्ञान है, इसलिए धर्म शास्त्रों में वर्णित तत्व नियम-सिद्धांतों का पालन करना अति आवश्यक है। ऋषियों ने तपोबल द्वारा अपने पिंड शरीर में ही समूचे ब्रह्मांड के दर्शन कर मानव कल्याण के लिए नियमों को धर्म शास्त्रों के रूप में प्रतिपादित किया। नदी के दो किनारों की तरह जन्म और मृत्यु हैं। दोनों छोरों के आगे-पीछे क्या है, हम नहीं जानते, इसलिए धर्मशास्त्रों में वर्णित ज्ञान का अनुसरण कर श्राद्ध आदि कर्म कर व्यक्ति अपना और अपने कुल का उद्धार कर सकता है।