रखें दवा का ध्यान… ग्रसित मां से शिशु तक एड्स नहीं पसार पाएगा पांव, कम होगा वायरस का लोड

Spread the love

नई दिल्ली : पिछले पांच साल में दवा के साथ इलाज की तकनीक में आए सुधार से शरीर में ह्यूमन इम्यूनोडेफिशियेंसी वायरस का वायरल लोड घटा है।

डॉक्टरों की निगरानी में रहने वाली मां से उसके बच्चे तक एड्स अब पैर नहीं पसार पाएगा। पिछले पांच साल में दवा के साथ इलाज की तकनीक में आए सुधार से शरीर में ह्यूमन इम्यूनोडेफिशियेंसी वायरस का वायरल लोड घटा है।

इनकी मदद से गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंचने वाले संक्रमण को ट्रैक कर उसे रोका जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एड्स के इलाज को लेकर लगातार शोध किए जा रहे हैं। मौजूदा समय में ऐसी दवाएं आ गई हैं जिसकी मदद से रोग के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इससे रोग के विकार को कम किया जा सकता है। दवाओं का साइड इफेक्ट्स भी घटा है।

डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर व एड्स रोकथाम के नोडल अधिकारी डॉ. पुलिन गुप्ता ने बताया कि एक समय तक मां से बच्चे को होने वाले एड्स के मामले 40 फीसदी तक थे। लेकिन दवाओं में सुधार, इलाज की तकनीक में बदलाव सहित दूसरे कारणों से इसे घटाकर शून्य तक लाया जा सकता है। इस कोशिश की मदद से मां से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने वाले रोग का खतरा खत्म हो गया है। अस्पताल में छह हजार मरीज पंजीकृत हैं। इनकी औसत उम्र 25 से 50 साल के बीच की है।

रोग गंभीर होने की आशंका घटी

एड्स पीड़ित में दूसरे गंभीर रोग होने की आशंका भी घट गई है। पहले एड्स पीड़ित का इलाज सीडी 4 काउंट 350 से 500 तक पहुंचने के बाद शुरू किया जाता था। नए नियम के तहत मरीज में एड्स की पुष्टि होते ही इलाज शुरू कर दिया जाता है। ऐसा होने से मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत स्थिति में रहती है। ऐसे रोगियों में टीबी, दिमाग में फंगस, फंगल निमोनिया सहित दूसरे गंभीर रोग होने की आशंका कम हो जाती है। ऐसे में एड्स पीड़ित भी सामान्य व्यक्ति की तरह पूूरी जिंदगी जी सकता है।

जागरूकता से घट रहे मामले

एड्स को लेकर लोगों में बढ़ रही जागरूकता से मामले लगातार कम हो रहे हैं। इसके अलावा एचआईवी की जांच बढ़ना, निरोध का इस्तेमाल, सुरक्षित मेडिकल उपकरण सहित अन्य कारणों से हर साल पीड़ित होने वाले रोगियों की संख्या घट रही है।

बढ़ जाती है हार्ट अटैक की आशंका

आरएमएल अस्पताल ने एड्स पीड़ित 200 लोगों पर एक शोध किया। इसमें पाया गया कि ऐसे रोगियों में हार्ट अटैक की आशंका सामान्य व्यक्ति के मुकाबले ज्यादा रहती है। इसके अलावा इन रोगियों में भूलने की समस्या, जोड़ों के दर्द सहित दूसरी समस्याएं भी देखी गई हैं। यह समस्या ऐसे रोगियाें में गंभीर होती है जो समय पर दवा नहीं लेते। ऐसे लोगों की बोन सामान्य लोगों के मुकाबले ज्यादा कमजोर होती हैं। ऐसे लोगों को विशेष आहार लेने की सलाह दी गई है।