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देश के एक मात्र शक्तिपीठ के बारे में जानिए, जहां मिट्टी की नौ पिंडियों की होती है पूजा

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नई दिल्ली : शारदीय और चैत्र नवरात्र पर यहां विशेष पूजन का प्रावधान है। इसकी वजह से नौ दिनों का यहां विशेष मेला का आयोजन किया जाता है। अष्टमी के दिन विशेष रूप से निशा पूजा होती है, जो श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बना रहता है।

आज नवरात्रि का सातवां दिन है और इस दिन देवी दुर्गा के सातवें स्वरुप माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगीश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है। सारण जिले में दिघवारा प्रखंड अंतर्गत आमी गांव में गंगा नदी तट पर स्थित मां अंबिका भवानी मंदिर में नवरात्रि के दौरान पूजा का खास महत्व है। अतिप्राचीन पौराणिक कथाओं और सारण गजेटीयर के पृष्ठ संख्या- 464 के अनुसार, अंबिका भवानी मंदिर राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ- स्थल पर स्थित है। यहां माता सति के शरीर की भस्मयुक्त अस्थि गिरि थी। यह स्थल शक्ति पीठ अंबिका स्थान आमी के रूप में पूरे देश में प्रसिद्ध हो गया।इसलिए इसे शक्ति पीठ कहा गया। यहां पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश व पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रहती है।

नौ दिनों का यहां विशेष मेला का आयोजन किया जाता है
शारदीय और चैत्र नवरात्र पर यहां विशेष पूजन का प्रावधान है। इसकी वजह से नौ दिनों का यहां विशेष मेला का आयोजन किया जाता है। हालांकि, अष्टमी के दिन विशेष रूप से निशा पूजा होती है, जो श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बना रहता है। इस स्थान को अवधूत भगवान राम, तांत्रिक बाबा गंगा राम सहित कई अन्य सिद्ध साधकों की तपोस्थली के रूप में भी जाना जाता है। संतान, दीर्घ आयु व सुखमय जीवन के लिए नवविवाहित दंपती आते हैं। मान्यता है कि यहां से आजतक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है। माता रानी सबकी मन्नतें पूरी करती हैं।

देश का एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ, जहां मिट्टी की पिंडी रूप की होती है पूजा
मार्केण्डय पुराण तथा दुर्गा सप्तशती के अनुसार, राजा सूरथ व समाधी वैश्य ने मिट्टी की नौ पिंडियों की प्रतिमा स्थापना की थी। इसी नौ पिंडी वाली प्रतिमा की पूजा की जाती है। दोनों ने इसी स्थान पर वर्षो तक पूजा की थी। तब देवी ने प्रकट होकर उन्हें मनचाहा वरदान दिया था। इस मंदिर में वही मिट्टी की भागाकार विशाल पिंड आज भी विद्यमान है। मां भवानी की मिट्टी रूपी प्रतिमा का प्रतिदिन जल, शहद, घी व चमेली के तेल से अभिषेक किया जाता है। चमत्कार ही है कि मिट्टी रूपी प्रतिमा का एक इंच भी क्षरण अब तक नहीं हुआ है। कहा जाता है कि पूरे भारत वर्ष में यही एक शक्तिपीठ है, जहां मिट्टी की पिंडी रूप में मां की पूजा होती है। वहीं गंगा नदी भी आदिशक्ति मां अंबिका भवानी के पांव पखारने के लिए यहां दक्षिण से उत्तर वाहिनी हो गई हैं। यहां श्रद्धालु भक्त मंदिर के गर्भगृह स्थित कुंड में हाथ डाल कर मन्नत मांगते है। कुंड से प्राप्त प्रसाद को मुट्ठी में बंद कर लाल वस्त्र में छुपाकर रखने से मन्नत पूरी हो जाती है फिर उस प्रसाद व वस्तु को कुंड में लौटा दिया जाता है। इस मंदिर में चैत्र और शारदीय नवरात्र पर श्रद्धालुओं की संख्या लाखों तक पहुंच जाती हैं।