नई दिल्ली : हर दिन ट्रेन में लाखों लोग सफर करते हैं। ट्रेन में सफर के दौरान बैठने के लिए मुख्य रूप से दो तरह की सुविधाएं होती हैं। रिजर्व और नॉन-रिजर्व सीटें। जनरल कोच में आमतौर पर नॉन-रिजर्व सीटें होती हैं, तो वहीं स्लीपर और एसी बोगी में सफर करने के लिए पहले से सीट रिजर्व करानी होती है। ट्रेन टिकट बुक करने के दौरान आपने देखा होगा कि लोअर बर्थ, अपर बर्थ, मिडिल बर्थ, साइड अपर बर्थ और साइड लोअर बर्थ के विकल्प दिए होते हैं। टिकट बुक करते समय लोगों के पास यह विकल्प होता है कि वो कौन सी सीट बुक करना पसंद करेंगे।
सामान्य तौर पर लोग मिडिल बर्थ पर यात्रा करने से बचते हैं। इसके पीछे रेलवे का ही एक ऐसा नियम है, जिसकी वजह से लोग मिडिल बर्थ लेने में खास रुचि नहीं दिखाते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर मिडिल बर्थ से जुड़े रेलवे के क्या नियम हैं? साथ ही ये भी जानेंगे कि मिडिल बर्थ को कब खोल सकते हैं और किस समय फोल्ड करना होता है।
मिडिल बर्थ पर सोने और उठने का समय
मिडिल बर्थ पर आप चाह कर भी एक तय समय से पहले और उसके बाद सो या बैठ नहीं सकते हैं। भारतीय रेलवे के नियमों के अनुसार, जिस भी यात्री को मिडिल बर्थ मिलता है, वो रात के 10 बजे ही सीट को खोल सकता है और सुबह 6 बजे तक इस सीट का इस्तेमाल कर सकता है। यानी नियम के अनुसार, सुबह 6 बजे यात्री को सीट फोल्ड करना ही होता है।
बता दें कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक को स्लीपिंग आवर्स कहते हैं, तो वहीं सुबह 6 बजे से रात के 10 बजे को नॉन-स्लीपिंग आवर्स कहा जाता है। नॉन-स्लीपिंग आवर्स में मिडिल बर्थ वाले यात्री को लोअर सीट पर बैठना होता है।
मिडिल बर्थ में होती है ये परेशानी
ऐसे में अगर मिडिल बर्थ वाला यात्री अगर थका हुआ है और सोना चाहता है तो रिजर्वेशन होने के बावजूद भी उसे ट्रेन में रात 10 बजे तक बैठ कर ही काम चलाना पड़ता है। अगर यात्री रेलवे के इस नियम का पालन नहीं करता है, तो रेलवे उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।