नई दिल्ली : प्रदूषित वातावरण में रहने से फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क से संबंधित कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।
विशेषज्ञों ने चेताया है कि यदि प्रदूषण-रोधी कोई व्यापक उपाय नहीं किए गए तो वायु प्रदूषण के कारण 2050 तक हर साल 6.6 मिलियन लोगों की असामयिक मृत्यु हो सकती है।
वायु प्रदूषण वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। पिछले एक महीने से दिल्ली-एनसीआर सहित पड़ोसी राज्य प्रदूषित वातावरण की मार झेल रहे हैं। अध्ययनों में इसे सेहत के लिए कई प्रकार से नुकसानदायक बताया गया है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी के लिए प्रदूषण खतरनाक हो सकता है। शोध बताते हैं कि प्रदूषित वातावरण में रहने से फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क से संबंधित कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं, जो समय से पहले मृत्यु के जोखिमों को बढ़ाने वाली मानी जाती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वायु प्रदूषण के कारण हर साल 7 मिलियन लोगों की असमय मौत हो जाती है। हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि साल 2021 में वायु प्रदूषण के कारण 8.1 मिलियन लोगों की मौत हुई।
इसी से संबंधित जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में विशेषज्ञों ने चेताया था कि यदि प्रदूषण-रोधी कोई व्यापक उपाय नहीं किए गए तो वायु प्रदूषण के कारण 2050 तक हर साल 6.6 मिलियन लोगों की असामयिक मृत्यु हो सकती है।
वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, वायु प्रदूषण आपके फेफड़ों पर सबसे ज्यादा असर डालता है। जब प्रदूषित हवा में मौजूद सूक्ष्म कण सांस के साथ अंदर जाते हैं तो इससे फेफड़ों के लिए दिक्कतें बढ़ सकती हैं। यह स्थिति पहले से ही सांस की बीमारियों जैसे अस्थमा और ब्रोंकाइटिस वाले मरीजों के लिए खतरनाक और जानलेवा भी हो सकती है।
इसी तरह वायु प्रदूषण फेफड़ों के साथ-साथ हृदय रोग के शिकार लोगों के लिए भी बहुत नुकसानदायक है। प्रदूषित वातावरण में रहने से ब्लड प्रेशर बढ़ने, हृदय गति रुकने, स्ट्रोक जैसी समस्याओं का जोखिम बढ़ सकता है।
कैंसर रिसर्च यूके ने एक रिपोर्ट में बताया, वायु प्रदूषण में कई प्रकार के सूक्ष्म और हानिकारक कणों का मिश्रण होता है, जिससे कैंसर होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। ये सभी बीमारियां समय से पहले मौत का खतरा बढ़ाने वाली मानी जाती हैं।
लैंसेंट की रिपोर्ट को लेकर विवाद
इस बीच केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने लैंसेट के उस अध्ययन के निष्कर्षों का विरोध किया है जिसमें कहा गया था कि देश के दस प्रमुख शहरों में वायु की गुणवत्ता खराब होने के कारण मृत्यु दर पर गंभीर असर पड़ा है। सीपीसीबी ने कहा कि इस अध्ययन के आंकड़े पूरी तरह से सही नहीं हैं। मौतों के लिए सीधे वायु प्रदूषण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
बोर्ड ने यह भी कहा कि जो सैटेलाइट डेटा और विश्लेषण की तकनीकें इस अध्ययन में इस्तेमाल की गई हैं, वह भारत की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती हैं।
क्या था लैंसेट का अध्ययन
लैंसेट ने एक अध्ययन में बताया था कि वायु प्रदूषण की वजह से हर साल भारत में करीब 33 हजार मौतें होती हैं। यह अध्ययन दिल्ली, अहमदाबाद, बंगलूरू, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी जैसे दस शहरों में किया गया था।
इस सबंध में सीपीसीबी ने कहा रिपोर्ट के मुताबिक पीएम 2.5 के शॉर्ट-टर्म एक्सपोजर के कारण भारत में मृत्यु दर अधिक होती है। इस अध्ययन की कुछ सीमाएं हैं। यानी इसमें कुछ गलतियां या कमियां हो सकती हैं। सीपीसीबी ने कहा कि भारत के अलग-अलग राज्यों और शहरों में मृत्यु के पंजीकरण की प्रणाली अलग-अलग तरीके से काम करती हैं। जिससे आंकड़ों में अंतर हो सकता है।
अध्ययन में मौत के कारणों के विश्लेषण के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी गई। बोर्ड ने कहा कि जब मौत के आंकड़ों के बारे में सही जानकारी नहीं होती, तो आंकड़ों से अनुमान लगाया जाता है। इसलिए इन मौतों को वायु प्रदूषण से जोड़ना सही नहीं है।