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भजनलाल परिवार से यहां हर दिग्गज हारा, पार्टियां बदलती रहीं पर 15 चुनाव से नहीं बदला परिणाम

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हरियाणा : हरियाणा के चुनाव में आदमपुर सीट बेहद खास हो जाती है। आदमपुर सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल और उनका परिवार का ही दबदबा रहा है। आदमपुर से सिर्फ भजनलाल नहीं बल्कि, उनकी पत्नी, बेटे, बहू और पोते भी जीतकर विधायक बने।

1966 में हरियाणा का गठन हुआ। एक साल बाद 1967 में राज्य के पहले विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में आदमपुर सीट से कांग्रेस के एच सिंह ने निर्दलीय आर सिंह को हरा दिया। राज्य के गठन के बाद भगवत दयाल शर्मा राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। चुनाव के बाद एक बार फिर शर्मा ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। हालांकि, चंद दिनों बाद ही दलबदल के चलते राज्य में राव बीरेंद्र सिंह सत्ता में आए। यह सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चली और 1968 में नए सिरे से चुनाव हुए।

आदमपुर का पर्याय भजनलाल
1968 के इस चुनाव में आदमपुर सीट से 37 साल के एक युवा को जीत मिलती है। ये युवा नेता न सिर्फ चुनाव जीतते हैं बल्कि आदमपुर का पर्याय बन जाते हैं। आगे चलकर एक दो नहीं बल्की तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बनते हैं। आदमपुर से उनका रिश्ता ऐसा जुड़ता है कि जितनी बार यहां से चुनाव लड़ते हैं हर बार जीतते हैं। सिर्फ वो नहीं बल्कि, उनकी पत्नी, बेटे, बहू और पोते भी यहां से जीतकर विधायक बनते हैं। 1968 से शुरू हुआ परिवार की जीत का ये सिलसिला अब तक जारी है। भले ही परिवार ने पार्टियां बदली हों, चुनाव निशान बदले हों लेकिन नतीजा हर बार इस परिवार के पक्ष में रहा है। हम बात कर रहे हैं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की।

1968 में पहली बार विधायक बने भजनलाल
भजनलाल के पिता स्व. खैराज मांजू परिवार सहित पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर रियासत के गांव कोटनवाली से विस्थापित होकर गांव मोहम्मदपुर रोही में आए थे। यहां करीब आठ साल तक भजनलाल रहे। इसके बाद परिवार आदमपुर चला गया। आदमपुर में ही भजनलाल पहले पंच बने, फिर पंचायत समिति के चेयरमैन बने। इसके बाद आदमपुर से 1968 में पहली बार विधायक बने। 1968 के इस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उतरे भजनलाल ने निर्दलीय बलराज सिंह को 10,044 वोट से हराया था।

1972 के विधासभा चुनाव में उन्होंने निर्दलीय देवीलाल को हराया। आपातकाल के बाद 1977 में जब चुनाव हुआ तब भजनलाल और देवीलाल दोनों जनता पार्टी में शामिल हो चुके थे। इस चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई और जीत हुई भजनलाल की भी। इस बार उन्होंने निर्दलीय मोहर सिंह को 20,803 वोट से हराया। आदमपुर से जीतकर भजनलाल हरियाणा सरकार में मंत्री बने। मंत्री भी किसके बने, उन्हीं देवीलाल की कैबिनेट के जिन्हें उन्होंने 1972 के चुनाव में आदमपुर सीट पर हराया था।
1977 के इस चुनाव में जनता पार्टी को 75 सीट पर जीत मिली। देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। राव बीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी को 5 और कांग्रेस को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं। मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल की सरकार दो साल बाद ही सियासी भंवर में फंस गए। भजनलाल ने पार्टी विधायकों का समर्थन अपने पक्ष में लेते हुए जून 1979 में राज्यपाल के सामने मुख्यमंत्री बनने का दावा ठोक दिया।

75 में से आधे से ज्यादा विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल से समर्थन वापस लेते हुए बगावत कर दी। अंतत: मुख्यमंत्री देवीलाल को अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंपना पड़ा। 29 जून 1979 को भजनलाल ने विधायकों का समर्थन अपने पक्ष में दिखाते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। साल 1980 में देश में मध्यावधि चुनाव हुए। महज तीन साल पहले बुरी तरह हारी कांग्रेस साढ़े तीन सौ से ज्यादा सीटें जीतकर फिर सत्ता में लौटी। इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं। केंद्र में बदले हालात को भांपते हुए मुख्यमंत्री भजन लाल भी जनता पार्टी छोड़कर कांग्रेस का हिस्सा बन गए। अकेले भजन लाल नहीं पूरी सरकार ने पाला बदल लिया। यह अपने तरह का देश का पहला मामला था।
1982 में फिर विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस ने 36, देवीलाल की पार्टी लोकदल ने 31, भाजपा ने 6 सीटें जीतीं। एक सीट पर जनता पार्टी और 16 सीटों पर आजाद प्रत्याशी विजयी हुए। 90 सीटों वाली विधानसभा में किसी को बहुमत नहीं मिलता। लोकदल को भाजपा का समर्थन था। इस तरह देवीलाल के गठबंधन के पास 37 विधायकों का समर्थन था।

नतीजे आते ही देवीलाल राज्यपाल गणपतराव तापसे के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर देते हैं। देवीलाल निर्दलियों और जनता पार्टी समेत 47 विधायकों का समर्थन होने का दावा करते हैं। राज्यपाल तापसे देवीलाल को दो दिन बाद बहुमत दिखाने के लिए कहते हैं। वहीं, भजन लाल इंदिरा गांधी से मुलाकात करके दावा करते हैं कि हरियाणा में सिर्फ वो ही सरकार बना सकते हैं। दिल्ली से वापस लौटकर भजनलाल राज्यपाल से मिलते हैं। इसके बाद राज्यपाल तापसे ने सरकार बनाने के लिए भजनलाल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर लेते हैं। देवीवाल राज्यपाल पर इंदिरा के इशारे पर काम करने का आरोप लगाते हैं। अपने कुछ विधायकों को लेकर दिल्ली के एक होटल में चले जाते हैं। इसके बाद भी कुछ विधायक पाला बदलने में कामयाब रहते हैं। अंत में भजनलाल ने विधानसभा में बहुमत साबित कर दिया और सरकार बनाने में कामयाब होते हैं। इसके साथ ही एक बार फिर देवीलाल को भजनलाल के हाथों सत्ता के संग्राम में हार मिलती है।
वापस आदमपुर लौटते हैं। 1982 के इस चुनाव में भजनलाल ने आदमपुर से लोकदल के नरसिंह बिश्नोई को हराया था। 1982 के इस चुनाव में आदमपुर सीट से आठ उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें से छह को हजार वोट भी नहीं मिले थे। इन सभी की जमानत जब्त हो गई थी।

1987 के चुनाव से एक साल पहले कांग्रेस ने भजनलाल की जगह बंसी लाल को मुख्यमंत्री बनाया। भजन लाल राज्यसभा गए और केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो गए। मुख्यमंत्री बदलने का फायदा कांग्रेस को नहीं हुआ और राज्य में देवीलाल की सरकार बनी।

जहां तक आदमपुर विधानसभा सीट की बात है तो यहां से 1987 में भजनलाल की पत्नी जसमा देवी कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरीं। जसमा देवी ने लोकदल के धरमपाल सिंह को 9,272 वोट से हरा दिया। भजनलाल के अलावा उनके परिवार के किसी सदस्य की आदमपुर में यह पहली जीत थी। 1989 में भजनलाल पहली बार के लोकसभा चुनाव में उतरे और जीते भी।

भजन लाल को तीसरी बार मिली कमान
1991 के विधानसभा चुनाव में भजनलाल एक बार फिर आदमपुर से चुनावी मैदान में उतरे। इस बार भी उन्होंने यहां से जीत दर्ज की। इस बार उन्होंने जनता पार्टी के हरि सिंह को 31,596 वोट से हराया था। इस बड़ी जीत के साथ ही भजन लाल ने तीसरी बार राज्य की कमान संभाली।

1993 में भजनलाल परिवार के एक और सदस्य ने चुनावी राजनीति में कदम रखा। दरअसल, 1991 के विधानसभा चुनाव में पंचकूला जिले की कालका विधानसभा सीट से जीते कांग्रेस के पुरुष भान का निधन हो गया। उनके निधन के बाद खाली हुई सीट पर भजन लाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई उम्मीदवार बनाया गया। चंद्रमोहन ने निर्दलीय प्रदीप कुमार को हराकर विधानसभा में कदम रखा।

1996 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस सत्ता से बाहर चली गई, लेकिन आदमपुर में भजनलाल की जीत का सिलसिला जारी रहा। इस चुनाव में उन्होंने हरियाणा विकास पार्टी सुरेंद्र सिंह को हराया था। 1996 के इस चुनाव के बाद सुरेंद्र के पिता बंसी लाल राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। हरियाणा विकास पार्टी सत्ता में आई, इसके बावजूद भजनलाल का किला अजेय बना रहा।

भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप की चुनावी राजनीति में एंट्री
दो साल बाद देश में लोकसभा चुनाव हुए तो भजनलाल करनाल लोकसभा सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे। सांसद बनने के बाद उन्होंने आदमपुर सीट से इस्तीफा दे दिया। भजनलाल के इस्तीफे के बाद आदमपुर सीट पर उप-चुनाव हुए।

इस उप-चुनाव में भजनलाल परिवार के एक और सदस्य ने चुनावी राजनीति में कदम रखा। ये सदस्य थे भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई। बड़े भाई की तरह छोटे भाई ने भी उप-चुनाव से चुनावी राजनीति में प्रवेश किया और जीत दर्ज की। आदमपुर का प्रतिनिधित्व करने वाले कुलदीप भजनलाल परिवार के तीसरे सदस्य बने। कुलदीप से पहले उनके पिता और उनकी मां यहां से विधायक रह चुके थे।

साल 2000 हरियाणा में एक और विधानसभा चुनावों का साल होता है। आदमपुर में एक बार फिर भजन लाल कांग्रेस के उम्मीदवार बनते हैं और जीतते भी हैं। इस चुनाव में भजन लाल भाजपा के गणेशी लाल को 46,057 वोट से मात देते हैं।

भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन उप मुख्यमंत्री बने
2005 के विधासनसभा चुनाव में भी आदमपुर में भजनलाल की जीत का सिलसिला जारी रहता है। इस चुनाव में भजनलाल इनेलो के राजेश को 71,081 वोट से हराते हैं। भजनलाल के साथ ही कांग्रेस पार्टी की भी इस चुनाव में जीत होती है। राज्य में पार्टी सत्ता में आती है, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री भजनलाल नहीं बल्कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा को बनाया जाता है। भजनलाल को साधने के लिए उनके बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई को राज्य का उप मुख्यमंत्री बनाया जाता है। चंद्र मोहन कालका सीट से जीतकर लगातार चौथी बार विधायक बने थे।

इसके बावजूद भजनलाल और कांग्रेस के रिश्ते बिगड़ते रहते हैं। भजनलाल पार्टी से बगावत कर अपने सांसद बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ नई पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस बना लेते हैं। भजनलाल को दलबदल कानून के तहत अयोग्य ठहरा दिया जाता है। आदमपुर सीट खाली हो जाती है।

आदमपुर विधानसभा सीट पर नए सिरे से उप-चुनाव होते हैं। इस उपचुनाव में भजनलाल अपनी नई पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरते हैं। कांग्रेस उनके खिलाफ देवीलाल के बेटे रणजीत चौटाला को उतारती है। सत्ताधारी कांग्रेस इसके बाद भी भजनलाल के किले में सेंध नहीं लगा पाती। भजनलाल इस उपचुनाव में रणजीत चौटाला को 26 हजार से ज्यादा वोट से हरा देते हैं। ये भजनलाल की आदमपुर में नौवीं जीत थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में भजनलाल हिसार लोकसभा सीट से ताल ठोंक देते हैं और जीत दर्ज करते हैं और लोकसभा पहुंच जाते हैं।

इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं तो आदमपुर से इस बार भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई मैदान में उतरते हैं। भजनलाल परिवार का दबदबा कायम रहता है। हरियाणा जनहित कांग्रेस के टिकट पर उतरे कुलदीप कांग्रेस के जयप्रकाश को कड़े मुकाबले में हरा देते हैं। मुकाबला कड़ा इसलिए क्योंकि लंबे समय बाद आदमपुर में भजनलाल परिवार की जीत का अंतर 10 हजार से कम होता है।
3 जून 2011 वो तारीख जब हरियाणा की राजनीति के चाणक्य और कई दलबल के इंजीनियर कहे जाने वाले भजनलाल को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो जाता है। 81 साल के भजनलाल के जाने के बाद हिसार लोकसभा सीट पर नए सिरे से उप-चुनाव होते हैं। इस उप-चुनाव में कुलदीप बिश्नोई जीत दर्ज करते हैं। हिसार से सांसद बनने के बाद कुलदीप विधायकी से इस्तीफा दे देते हैं। इसके चलते आदमपुर विधानसभा सीट पर नए सिरे से उप-चुनाव होते हैं। इस उप-चुनाव में हरियाणा जनहित कांग्रेस के टिकट पर भजनलाल परिवार के एक और सदस्य की चुनावी राजनीति में एंट्री होती है। कुलदीप बिश्नोई की पत्नी और भजनलाल की बहू रेणुका बिश्नोई हरियाणा जनहित कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ती हैं और जीतती भी हैं।

2014 और 2019 में कुलदीप जीते
2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले कुलदीप बिश्नोई फिर से यहां से जीतकर विधानसभा पहुंचते हैं। दोनों बार कुलदीप कांग्रेस के टिकट पर जीतते हैं। क्योंकि 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया था। 2022 आते-आते कुलदीप बिश्नोई का कांग्रेस से मोह भंग हो जाता है और पार्टी और विधायकी दोनों छोड़ देते हैं। आदमपुर में एक और उप-चुनाव की नौबत आती है, और भजनलाल परिवार के एक और सदस्य का चुनावी राजनीति में प्रवेश होता है। कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई इस उप-चुनाव में आदमपुर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं और अपने ताऊ, पिता और मां की तरह उप-चुनाव में जीतकर पहली बार विधायक बनते हैं।

इस बार क्या हैं समीकरण?
आदमपुर सीट पर भजनलाल परिवार की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भव्य बिश्नोई पर है। मौजूदा विधायक भव्य एक बार फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने आदमपुर से नए चेहरे रिटायर्ड आईएएस चंद्रप्रकाश पर दांव खेला है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने एडवोकेट भूपेन्द्र बेनीवाल, इंडियन नेशनल लोकदल ने रणदीप और जननायक जनता पार्टी ने कृष्ण कुमार को अपना चेहरा बनाया है।

आदमपुर में पूर्व सीएम चौधरी भजनलाल के सामने पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल, पूर्व सीएम बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश, देवी लाल के बेटे रणजीत सिंह चुनाव में उतरे। इनमें से किसी को जीत नहीं मिल सकी।