नई दिल्ली: कांग्रेस दक्षिणी राज्यों में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के विवादास्पद परिसीमन के खिलाफ जनता का समर्थन जुटाएगी. यहां उत्त भारत की तुलना में कांग्रेस की स्थिति काफी मजबूत है. कांग्रेस दो दक्षिणी राज्यों कर्नाटक और तेलंगाना में सत्ता में है, तमिलनाडु में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है और केरल में मुख्य विपक्षी दल है.आंध्र प्रदेश एकमात्र दक्षिणी राज्य है, जहां कांग्रेस की स्थिति कमजोर है. दक्षिणी राज्य महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कर्नाटक से लोकसभा में 28, तेलंगाना से 17, तमिलनाडु से 39, पुडुचेरी से 1, केरल से 20 और आंध्र प्रदेश से 25 सदस्य हैं.इसकी तुलना में, कांग्रेस केवल उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश में शासन करती है, जो लोकसभा में 4 सदस्य भेजता है और उत्तर प्रदेश, 80, बिहार 40, मध्य प्रदेश 29, छत्तीसगढ़ 11, राजस्थान 25, पश्चिम बंगाल 42, महाराष्ट्र 48 और गुजरात 26 जैसे बड़े राज्यों में इसकी सीमित उपस्थिति है
.इस बीच कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिव कुमार ने कहा है कि दक्षिणी राज्य केंद्र के इस कदम का कड़ा विरोध करेंगे.दरअसल, कांग्रेस की दो मुख्य चिंताओं में से एक यह है कि ताजा जनगणना के आंकड़ों को संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के प्रस्तावित परिसीमन का आधार बनाया जाना चाहिए, जो मौजूदा सीटों की संख्या बढ़ाने या घटाने में राज्यों की संबंधित आबादी को ध्यान में रखेगा. इसके अलावा, कांग्रेस चाहती है कि पिछले दशकों में उत्तरी राज्यों की तुलना में जनसंख्या नियंत्रण उपायों पर बेहतर प्रदर्शन करने के लिए दक्षिणी राज्यों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए.’अन्याय के खिलाफ लड़ेंगे’इस संबंध में तमिलनाडु के प्रभारी एआईसीसी सचिव सूरज हेगड़े ने ईटीवी भारत से कहा, “परिसीमन के मुद्दे पर जनता में निश्चित रूप से एक मजबूत भावना है.
हम इस कदम का कड़ा विरोध करेंगे और दक्षिणी राज्यों के साथ होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ेंगे. हम परिसीमन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन चाहते हैं कि इसे बहुत पारदर्शी और पेशेवर तरीके से किया जाए.”हेगड़े ने कहा, “सरकार का कहना है कि संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन का आधार जनसंख्या डेटा होगा, लेकिन देश में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी. यह प्रक्रिया 2021 में फिर से की जानी थी, लेकिन अभी तक शुरू नहीं हुई है और इस बात की कोई खबर नहीं है कि यह जल्द ही होने जा रही है. क्या 14 साल पुराने जनगणना डेटा के साथ परिसीमन में जल्दबाजी करना उचित होगा? इसके अलावा, यह सर्वविदित है कि पिछले कई दशकों में उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्य जनसंख्या वृद्धि को रोकने में अधिक सफल रहे हैं.इस पर पीठ थपथपाने की जरूरत है और इसे दक्षिणी राज्यों को दंडित करने का बहाना नहीं बनाया जाना चाहिए.”
एआईसीसी पदाधिकारी के अनुसार देश भर में संसदीय सीटों की संख्या में वृद्धि होने की स्थिति में, दक्षिणी राज्यों को आनुपातिक जनसंख्या कारक के आधार पर मामूली लाभ हो सकता है, जबकि उत्तरी राज्य प्रमुख लाभार्थी हो सकते हैं.’दक्षिणी राज्यों के लोगों को विभाजित करने की कोशिश’तेलंगाना के प्रभारी एआईसीसी सचिव पी विश्वनाथन के अनुसार, परिसीमन के अलावा भाजपा हिंदी को लागू करके दक्षिणी राज्यों के लोगों को विभाजित करने की कोशिश कर रही थी, जो एक बहुत ही भावनात्मक मुद्दा था.विश्वनाथन ने ईटीवी भारत से कहा, “हमारे नेता राहुल गांधी सामाजिक न्याय के लिए जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं, लेकिन पीएम मोदी इस पर सहमत नहीं हैं. उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में मजबूत भाजपा अब परिसीमन कदम के जरिए दक्षिणी राज्यों को नुकसान पहुंचाना चाहती है. वे अपने राज्यों में सीटें बढ़ाना चाहते हैं और दक्षिणी राज्यों में घटाना चाहते हैं, लेकिन वे सफल नहीं होंगे. दक्षिणी राज्य इस मुद्दे पर एकजुट हैं और इस तरह के किसी भी कदम का कड़ा विरोध करेंगे.”