नई दिल्ली : प्रजनन से संबंधित समस्याओं के मामले पिछले एक-दो दशकों में काफी तेजी से बढ़े हैं, महिला और पुरुष दोनों इसके शिकार रहे हैं। कुछ अध्ययनों में विशेषज्ञों का मानना था कि जिस तरह से हमारी लाइफस्टाइल खराब होती जा रही है, ये उसी का दुष्प्रभाव हो सकता है। वहीं कुछ अन्य अध्ययनों में अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्याओं के साथ अन्य कारकों को भी जिम्मेदार बताया गया था।
इस बीच हाल ही में डेनमार्क स्थित नॉर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बढ़ती प्रजनन समस्याओं को लेकर किए गए अध्ययन के आधार पर बड़ा खुलासा किया है। इसमें पाया गया है कि वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने वाले पुरुषों में इस प्रकार के विकारों का खतरा अधिक हो सकता है।
बीएमजे जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन की रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सभी लोगों को अलर्ट रहने की सलाह दी है। विशेषतौर पर राजधानी दिल्ली-एनसीआर में रहने वालों को और भी सावधानी बरतते रहने की जरूरत है। गौरतलब है कि स्विट्जरलैंड स्थित वायु-गुणवत्ता निगरानी समूह ने इसी साल प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा था कि 2023 में दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी थी। एनसीआर का क्षेत्र साल के अधिकतर महीनों में वायु गुणवत्ता में खराबी का सामना करता है।
वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रही है समस्या
इस अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण, विशेषतौर पर पीएम 2.5 हमारे स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्याकारक है। इससे सांस से संबंधित बीमारियां तो बढ़ती ही हैं, साथ ही ये प्रजनन विकारों के लिए भी बड़ा कारण है। पीएम 2.5 का संपर्क पुरुषों में नपुंसकता के खतरे को बढ़ा रहा है। इसी तरह, ध्वनि प्रदूषण महिलाओं में बांझपन के उच्च जोखिम से जुड़ा हुआ पाया गया है।
वैज्ञानिकों ने बताया हर सात में एक कपल को प्रजनन समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बढ़ते प्रदूषण को अगर नियंत्रित करने के प्रभावी उपाय न किए गए तो ये जोखिम और भी अधिक हो सकता है।
अध्ययन में क्या पता चला?
अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने 30 से 45 वर्ष की आयु के 526,056 पुरुषों और 377,850 महिलाओं के डेटा का विश्लेषण किया, जिनके दो से कम बच्चे थे। इसके अलावा उन लोगों का डेटा भी लिया गया जो सक्रिय रूप से गर्भधारण की कोशिश कर रहे थे। सभी प्रतिभागियों के घर के आसपास समय-समय पर पीएम2.5 प्रदूषण की औसत मात्रा दर्ज की गई।
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने 16,172 पुरुषों और 22,672 महिलाओं में प्रजनन समस्याओं का निदान किया। कई स्तर पर किए गए जांच में पाया गया कि जिन प्रतिभागियों के निवास क्षेत्रों में पीएम 2.5 का स्तर अधिक था ऐसे 30 से 45 वर्ष की आयु के पुरुषों में नपुंसकता का खतरा 24% बढ़ गया।
प्रदूषण के कारण होने वाली समस्याएं
इसके अलावा सड़क यातायात और अन्य प्रकार से होने वाले शोर का महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर असर देखा गया। पांच वर्षों में औसत से 10.2 डेसिबल अधिक शोर के स्तर के संपर्क में आने से 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में बांझपन का खतरा 14% बढ़ गया।
मानव अध्ययनों से पता चलता है कि वायु प्रदूषण वीर्य की गुणवत्ता को कम कर सकता है, जिससे इसकी मात्रा, शुक्राणु सांद्रता, गतिशीलता जैसे पैरामीटर प्रभावित होते हैं। वहीं प्रदूषण के कारण महिलाओं में ओवरी संबंधी विकार, प्रजनन क्षमता में कमी और मासिक धर्म चक्र में अनियमितता की दिक्कत हो सकती है, जो प्रजनन विकारों का कारण बनती है।
क्या कहते हैं शोधकर्ता?
शोधकर्ताओं ने कहा, दुनियाभर में कई देश जन्मदर में गिरावट का सामना कर रहे हैं, इसलिए प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले पर्यावरण प्रदूषकों के बारे में जानकारी महत्वपूर्ण है। यदि भविष्य के अध्ययनों में भी हमारे परिणामों की पुष्टि होती है, तो हम निश्चित ही गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं। प्रदूषण को सिर्फ श्वसन विकारों तक सीमित करके देखना ठीक नहीं है। पहले भी कई अन्य अध्ययनों में भी पीएम 2.5 के कारण होने वाले गंभीर स्वास्थ्य विकारों को लेकर सभी लोगों को सावधान किया जाता रहा है।