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क्या है गुलियन बैरे सिंड्रोम जिसने महाराष्ट्र में मचा दी है तबाही, कोविड के दौरान भी देखे गए थे मामले

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नई दिल्ली : महाराष्ट्र पहले से ही बर्ड फ्लू के संक्रमण से परेशान था, इसी बीच जीबीएस की एंट्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव बढ़ा दिया है। यहां पुणे के एक मरीज मौत हो गई है और 100 से अधिक लोगों में इसके मामले दर्ज किए गए हैं।

आखिर क्या है ये बीमारी, आइए जानते हैं।

देश इन दिनों कई प्रकार की गंभीर और संक्रामक बीमारियों की चपेट में है। पहले एचएमपीवी और फिर एच5एन1 के संक्रमण ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ाई और अब महाराष्ट्र के कई शहरों में गिलियन बैरे सिंड्रोम के बढ़ते मामलों ने लोगों को डरा दिया है। महाराष्ट्र पहले से ही बर्ड फ्लू के संक्रमण से परेशान था, इसी बीच जीबीएस की एंट्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव बढ़ा दिया है।

गिलियन बैरे सिंड्रोम को लेकर सामने आ रही हालिया जानकारियों के मुताबिक पुणे में एक मरीज मौत हो गई है, जो महाराष्ट्र में इस बीमारी से होने वाली पहली संदिग्ध मौत है। पुणे में 100 से अधिक लोगों में जीबीएस के मामले दर्ज भी किए गए हैं। विभिन्न अस्पतालों में इलाज करा रहे इन मरीजों में से करीब 16 वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि करीह 19 मरीज 9 वर्ष से कम उम्र के और करीब 10 मरीज 65-80 की आयु वाले हैं। इससे स्पष्ट होता है कि ये बीमारी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को प्रभावित कर रही है।

महाराष्ट्रे के कई हिस्सों में बढ़ती इस बीमारी को देखते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सभी लोगों को अलर्ट किया है। क्या ये कोई नई संक्रामक बीमारी है, ये बीमारी कैसे बढ़ रही है और इससे बचाव के लिए क्या किया जा सकता है, आइए इस बारे में विस्तार से समझते हैं।

कोविड-19 के दौरान भी चर्चा में थी ये बीमारी

जून 2021 में जब कोविड की दूसरी लहर चल रही थी उसी दौरान कई देशों में गिलियन बैरे सिंड्रोम के मामलों को लेकर भी चर्चा तेज हो गई थी। वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में बताया था कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के साइड-इफेक्ट्स के रूप में कुछ लोगों में गुलियन-बैरे सिंड्रोम की समस्या देखी जा रही है। हालांकि बाद में कुछ अन्य अध्ययनों में वैक्सीनेशन के इस दुष्प्रभाव को नकारा गया था।

गिलियन बैरे सिंड्रोम के बारे में जानिए

गिलियन बैरे सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपके ही शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्रिकाओं पर अटैक कर देती है। इस वजह से मरीजों को कमजोरी, सुन्न होने या फिर लकवा मारने जैसे दिक्कतें हो सकती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ जीबीएस की समस्या को मेडिकल इमरजेंसी के तौर पर देखते हैं, जिसमें रोगी को तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है। इलाज न मिलने पर जान जाने का भी खतरा हो सकता है।

क्लीवलैंड क्लिनिक की रिपोर्ट पर नजर डालें तो पता चलता है कि दुनियाभर में हर साल लगभग एक लाख लोगों को ये समस्या होती है, हालांकि ये दिक्कत क्यों होती है इसका सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं है। अगर समय पर रोग का इलाज हो जाए तो इससे आसानी से ठीक हो सकते हैं।

गुलियन-बैरे सिंड्रोम के क्या लक्षण होते हैं?

मेडिकल रिपोर्ट्स के मुताबिक ये बीमारी आपके पेरीफेरल नर्वस को अटैक करती है। ये तंत्रिकाएं मांसपेशियों की गति, शरीर में दर्द के संकेत, तापमान और शरीर को छूने पर होने वाली संवेदनाओं का एहसास कराती हैं। इन तंत्रिकाओं को होने वाली क्षति के कारण आपको कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं।
हाथ और पैर की उंगलियों, टखनों या कलाई में सुई चुभने जैसा एहसास।


पैरों में कमजोरी जो शरीर के ऊपरी हिस्से तक फैल सकती है।
चलने या सीढ़ियां में असमर्थ होना।
बोलने, चबाने या निगलने में परेशानी होना।
पेशाब पर नियंत्रण न रह जाना या हृदय गति का बहुत बढ़ जाना।

आखिर क्यों होती है ये बीमारी?

गिलियन-बैरे सिंड्रोम क्यों होता है इसका सटीक कारण ज्ञात नहीं है। कुछ लोगों में हाल ही में हुई सर्जरी या टीकाकरण के बाद भी इसके मामले देखे जा सकते हैं। गिलियन-बैरे सिंड्रोम में, आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली वह नसों पर अटैक करना शुरू कर देती है। इससे नसों का सुरक्षात्मक आवरण क्षतिग्रस्त हो जाता है। यह क्षति नसों को आपके मस्तिष्क तक संकेत भेजने में दिक्कत डाल सकती है जिसके कारण कई तरह की जटिलताएं होने लगती हैं।

अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ प्रकार के बैक्टीरिया या वायरस भी इस समस्या को ट्रिगर कर सकते हैं। कैम्पिलोबैक्टर नामक बैक्टीरिया जो अक्सर अधपके पोल्ट्री में पाया जाता है उससे ये दिकक्त होती रही है। इन्फ्लूएंजा वायरस, साइटोमेगालोवायरस, जीका वायरस और हेपेटाइटिस ए, बी, सी और ई का संक्रमण भी गिलियन-बैरे सिंड्रोम को ट्रिगर करने कारण बन सकता है।

गिलियन-बैरे सिंड्रोम हो जाए तो क्या करें?

गिलियन-बैरे सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है, लेकिन सहायक उपचारों से रिकवरी में तेजी और लक्षणों में कमी आ सकती है। प्लाजमा थेरेपी और इम्यूनोग्लोबिन थेरेपी की मदद से इसका इलाज किया जाता रहा है। डॉक्टर कहते हैं, इस रोग से बचाव के लिए कोई ज्ञात तरीका नहीं है, हालांकि गुड हाइजीन का पालन करके इस तरह की समस्याओं के खतरे को कम किया जा सकता है।

अपने हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखें, किसी भी सतह को छूने से बचें या छूने के बाद हाथ जरूर धोएं।