नई दिल्ली : एक हालिया विश्लेषण से पता चला है कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण बच्चों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं और मृत्यु दर में बड़ा इजाफा हुआ है। साल 2019 में बाहरी वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें रिपोर्ट की गईं।
राजधानी दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ महीनों से वायु प्रदूषण का स्तर गंभीर और बेहद गंभीर श्रेणी में बना हुआ है। वायु गुणवत्ता सूचकांक का 400 या इससे अधिक बने रहना सेहत के लिए कई प्रकार से हानिकारक माना जाता है। मंगलवार को सुबह करीब 6:30 बजे दिल्ली के कई हिस्सों में एक्यूआई 396 से 400 रिकॉर्ड किया गया। रोहिणी और विवेक विहार में एक्यूआई 430 से अधिक था। हवा की इस तरह की गुणवत्ता के अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों प्रकार के दुष्प्रभावों का खतरा रहता है।
वायु प्रदूषण और इसके कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित एक अध्ययन की रिपोर्ट काफी डराने वाली है। कोलेब्रेशन फॉर एयर पॉल्यूशन एंड हेल्थ इफेक्ट रिसर्च इंडिया के साल 2023 के विश्लेषण में कहा गया है कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में गंभीर बीमारियों और मृत्यु दर में बड़ा इजाफा हुआ है।
साल 2019 में बाहरी वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें रिपोर्ट की गईं। इसके बाद हरियाणा और पंजाब में भी बच्चों का मृत्यु दर काफी अधिक था।
प्रदूषण के कारण बढ़ा बच्चों की मौत का खतरा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये डेटा वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु दर से संबंधित पिछले शोध और अनुमान मॉडल पर आधारित है। ये रिपोर्ट अभी तक पब्लिक डोमेन में नहीं डाली गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक अकेले साल 2019 में, बाहरी स्रोतों के कारण होने वाले प्रदूषण और इससे हवा में बढ़ते पीएम 2.5 के अलावा खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन के उपयोग से भारत में 16 लाख से अधिक मौतें हुईं, इसमें से 1.5 लाख से अधिक मौतें 14 साल से कम उम्र के बच्चों की थीं।
भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु के लिए वायु प्रदूषण को तीसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक माना गया है। विशेषज्ञों ने कहा, बच्चे वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों से असमान रूप से प्रभावित होते हैं। इतना ही नहीं इसका प्रतिकूल प्रभाव उनके पूरे जीवन काल पर असर डाल सकता है।
दिल्ली सहित कई राज्य प्रभावित
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 में, उत्तराखंड, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में आउटडोर PM2.5 से संबंधित मौतों के प्रतिशत में वृद्धि हुई है। वहीं गोवा, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश में कुछ गिरावट देखी गई। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 10% से अधिक मौतें, घरों में खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन के उपयोग से जुड़ी थीं।
धुंध और प्रदूषण सेहत के लिए नुकसानदायक
वायु प्रदूषण और इसके कारण होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को लेकर एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि धुंध और प्रदूषण के चलते हमारे शरीर में कई हानिकारक रसायन प्रवेश कर जाते हैं, जिससे अंगों और उनकी कार्यप्रणाली पर नकारात्मक असर हो रहा है।
धुंध में मौजूद प्रदूषक कणों और हानिकारक गैसों के कारण श्वसन तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब हम धुंध में सांस लेते हैं, तो ये कण हमारी नाक, गले, फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी, सांस फूलना और खांसी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। खासकर बच्चों, बुजुर्गों और पहले से श्वसन संबंधी समस्याओं से ग्रसित लोगों को अधिक खतरा होता है।
क्या कहते हैं डॉक्टर?
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. संजय तेवतिया कहते हैं, राजधानी दिल्ली-एनसीआर में जिस तरह से धुंध और प्रदूषण का स्तर देखा जा रहा है इसके कारण श्वसन तंत्र की समस्या, आंखों में संक्रमण, त्वचा में जलन-सूजन का तो खतरा बढ़ ही गया है साथ ही धुंध के कारण अनेक शारीरिक और मानसिक दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। इससे बचने के लिए कुछ सावधानी बरतते रहना बहुत जरूरी है।
अगर घर से बाहर जा रहे हैं तो मास्क और चश्मा जरूर पहनें। धुंध के दौरान वातावरण में मौजूद हानिकारक प्रदूषक तत्व जैसे- कार्बन मोनो ऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसें रक्त संचार तंत्र को प्रभावित कर सकती हैं। इससे रक्तचाप बढ़ने, दिल की धड़कन असामान्य होने और हृदय संबंधी रोगों का खतरा बढ़ सकता है। खासकर वो लोग, जो पहले से हृदय रोगों से पीड़ित हैं, वे धुंध के कारण अधिक प्रभावित हो सकते हैं।