नई दिल्ली : गोपालगंज का ऐतिहासिक थावे दुर्गा मंदिर दो तरफ से जंगलों से घिरा है। इस मंदिर में पड़ोसी देश नेपाल, यूपी, झारखंड, बिहार के कई जिले से श्रद्धालु पूजा-अर्चना एवं दर्शन करने आते हैं।
आज शारदीय नवरात्रि की षष्ठी तिथि है। आज के दिन से ही दुर्गा पूजा का आगाज हो जाता है। इसके साथ ही नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। बिहार में गोपालगंज जिले के मां थावे दुर्गा मंदिर में शारदीय नवरात्र के दौरान यहां पूजा करने का कुछ विशेष ही महत्व है। नवरात्रि के नौ दिनों में यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्र में यहां प्रसिद्ध मेला भी लगाया जाता है। मान्यता है कि मां थावे दुर्गा मंदिर में सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। मां का कोई भक्त यहां से खाली हाथ नहीं लौटता है। मां अपने सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती है।
थावे दुर्गा मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है
गोपालगंज का ऐतिहासिक थावे दुर्गा मंदिर दो तरफ से जंगलों से घिरा है और इस मंदिर का गर्भगृह काफी पुराना है। इस मंदिर में पड़ोसी देश नेपाल, यूपी, झारखंड, बिहार के कई जिले से श्रद्धालु पूजा-अर्चना एवं दर्शन करने आते हैं। वैसे यहां सालों भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन चैत्र और इसके अलावा इस मंदिर में सालों भर सोमवार और शुक्रवार को विशेष पूजा होती है।इस दो दिन यहां भक्तों की अत्यधिक भीड़ उमड़ती है। सावन के महीने में भी मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर को लोग थावे वाली माता का मंदिर, सिंहासिनी भवानी के नाम से भी जानते हैं। लोग मां के दरबार में खाली हाथ आते हैं लेकिन झोली भरकर ले जाते हैं। मां के आशीष से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। थावे दुर्गा मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है।
कामाख्या से चल कर आई देवी मां
थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की कहानी काफी रोचक है। चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का बड़ा भक्त मानते थे। तभी अचानक उस राजा के राज्य में अकाल पड़ गया। उसी दौरान थावे में माता रानी का एक भक्त रहषु रहा करता था। रहषु द्वारा पटेर को बाघ से दौनी करने पर चावल निकलने लगा। मंत्रियों ने यह बात राजा तक पहुंचाई लेकिन राजा को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। राजा रहषु के विरोध में हो गया और उसे ढोंगी, पाखंडी कहने लगा और उसने रहषु से कहा कि मां के बहुत बड़े भक्त हो तो मां को यहां बुलाओ। इस पर रहषु ने राजा से कहा कि यदि मां यहां आईं तो राज्य को सत्यानाश कर देंगी लेकिन राजा नहीं माना। रहषु मां को बुलाने लगे और राजा से कहने लगे कि देवी मां कामाख्या से चल दी है और पटना तक आ गई है। अभी भी मान जाइए लेकिन राजा करने को तैयार नहीं था। फिर रहशु ने यह बताया कि अब मां पटना से चलकर छपरा के आमी तक आ पहुंची है। अब भी कहिए तो मां को वहीं से लौटा दिया जाए। अंत में जैसे ही मां थावे के करीब पहुंची कि राजा के जंगलों में तेज तूफान आने लगा और सभी भवन हिलने लगे। फिर भी रहषु राजा से कहा की आप अभी तो विश्वास कीजिए कहिए तो मां को यहीं से लौटा दे। लेकिन राजा ने कहा कि नहीं आज मैं भी मां से दर्शन करके ही मानूंगा।रहषु भगत के आह्वान पर देवी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंची और रहषु के मस्तक को फाड़ते हुए अपना कंगन दिखाकर राजा को दर्शन दी। राजा के सभी भवन गिर गए। मां का दर्शन करते ही राजा मर गया।
