टाइप-1 डायबिटीज का मिल गया ‘रामबाण इलाज’, हमेशा के लिए छूट सकती है इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत

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नई दिल्ली : डायबिटीज को दुनियाभर में तेजी से बढ़ती गंभीर और क्रोनिक बीमारियों में से एक माना जाता है, हर साल इस रोग का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। डायबिटीज मुख्यरूप से दो प्रकार की होती है- टाइप-1 और टाइप-2। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, एक बार डायबिटीज का निदान हो जाने के बाद जीवनभर इसको नियंत्रित रखने के लिए प्रयास करते रहना होता है। टाइप-2 डायबिटीज की समस्या को दवाओं के साथ लाइफस्टाइल-आहार में सुधार करके कंट्रोल किया जा सकता है, जबकि टाइप-1 डायबिटीज की स्थिति में रोगियों को जीवनभर इंसुलिन लेते रहने की आवश्यकता होती है।

इस दिशा में अब स्वास्थ्य विशेषज्ञों को बड़ी कामयाबी मिली है। चीनी वैज्ञानिकों का कहना है कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन से टाइप-1 डायबिटीज की बीमारी को ठीक किया जा सकता है।

हाल ही में एक 25 वर्षीय महिला में डायबिटीज की समस्या ठीक की गई है। वह करीब एक दशक से अधिक समय से इस बीमारी से पीड़ित थी। वैज्ञानिकों ने बताया कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से लगभग ढाई महीने में ही महिला को इस बीमारी में विशेष लाभ मिल गया है। अब वह बिना इंसुलिन के स्वाभाविक रूप से शुगर के स्तर को कंट्रोल कर सकती है।

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट को माना जा रहा है वरदान

चीन के एक स्थानीय अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक एक दशक से भी अधिक समय से टाइप-1 डायबिटीज की शिकार महिला को इनवेसिव सर्जरी के माध्यम से ट्रांसप्लांट के बाद डायबिटीज में काफी आराम मिला है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जरी में केवल आधे घंटे का समय लगा। अब महिला बेहतर तरीके से डायबिटीज को कंट्रोल कर पा रही है।

अध्ययन की रिपोर्ट को सेल जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

टाइप-1 डायबिटीज क्या है?

स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन किस तरह से फायदेमंद है, इसे जानने से पहले ये समझना जरूरी है कि टाइप-1 डायबिटीज क्या है और इसे क्यों खतरनाक माना जाता है?

टाइप-1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून बीमारी है। जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली स्वयं ही अग्न्याशय में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट करने लगती है तो ये बीमारी हो सकती है। इंसुलिन के बिना, शर्करा आपके रक्तप्रवाह में जमा होने लग जाती है जिसके कई नुकसान हो सकते हैं।

टाइप-1 डायबिटीज वालों के लिए अब तक इसलेट ट्रांसप्लांट एक तरीका रहा है जिसमें किसी मृतक डोनर के अग्न्याशय से आइलेट कोशिकाओं को निकालकर टाइप-1 डायबिटीज वाले किसी व्यक्ति के लीवर में प्रत्यारोपित किया जाता है। लेकिन डोनर की कमी के कारण ये काम काफी कठिन रहा है।

देखे गए अच्छे परिणाम

रिपोर्ट में कहा गया है कि अब स्टेम सेल थेरेपी ने मधुमेह के उपचार के लिए नई संभावनाओं को खोल दिया है। इसमें रासायनिक रूप से प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम-सेल-ड्राइब्ड आइलेट्स या सीआईपीएससी का उपयोग किया जाता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने पहले रोगी से ही कोशिकाएं लेकर रसायनिक रूप से इसमें कुछ बदलाव किए। इस प्रकिया में कोशिकाओं को इसलेट कोशिकाओं में बदल कर रोगी के शरीर में वापस प्रत्यारोपित किया गया।

छूट सकती है इंसुलिन की जरूरत

पिछले साल जून में, चीनी शोधकर्ताओं की टीम को क्लीनिकल रिसर्च के लिए स्वीकृति मिली थी। इसके बाद उन्होंने अपने पहले रोगी में इसका प्रत्यारोपण किया है। CiPSC आइलेट ट्रांसप्लांट के बाद, मरीज का फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज का स्तर धीरे-धीरे सामान्य हो गया और इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत में लगातार कमी आई। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रांसप्लांट के 75 दिन बाद उसकी इंसुलिन इंजेक्शन पूरी तरह छूट गई।

विशेषज्ञों ने कहा, ये निश्चित ही टाइप-1 डायबिटीज के इलाज में मददगार साबित हो सकती है।