यहां विराजते हैं गणपति के 8 स्वरूप, तस्वीरों में करें अष्टविनायक के दर्शन

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नई दिल्ली : 10 दिवसीय गणेश उत्सव की शुरुआत विनायक चतुर्थी से हो रही है। गणेशोत्सव के दौरान भव्य गणपति पंडाल सजते हैं और घरों में भी प्रथम पूज्य गणेश जी की स्थापना की जाती है। कई लोग इस मौके पर गजानन के मंदिरों के दर्शन के लिए जाते हैं। वैसे तो देशभर में गणपति के भव्य मंदिर बने हुए हैं लेकिन सबसे प्रमुख गणेश मंदिरों में अष्टविनायक का नाम शामिल है।

अष्टविनायक मंदिर एक मंदिर नहीं, बल्कि आठ गणेश मंदिरों की श्रृंखला है। इस श्रृंखला में शामिल हर गणपति मंदिर का अपना खास महत्व और इतिहास है। इन मंदिरों का जिक्र पुराणों में भी मिलता है। खास बात ये है कि आठों प्रमुख गणपति मंदिर महाराष्ट्र में ही स्थित हैं। ऐसे में अगर आपको अष्टविनायक मंदिरों के दर्शन करने हैं तो महाराष्ट्र के अलग अलग शहरों में जाकर दर्शन कर सकते हैं।

गणपति उत्सव के मौके पर महाराष्ट्र में स्थित इन अष्टविनायक मंदिरों के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं तो सबसे पहले ये जान लें कि अष्टविनायक मंदिरों के नाम क्या हैं और ये किन शहरों में स्थित हैं। साथ ही अगर आप अष्टविनायक मंदिरों नहीं जा सकते हैं जो तस्वीरों के जरिए दर्शन कर सकते हैं।

मोरगांव में मयूरेश्वर

महाराष्ट्र के पुणे जिले में बारामती तालुका में मोरगांव नाम का स्थान है, जहां मयूरेश्वर विनायक मंदिर है। अष्टविनायक मंदिरों में से एक मयूरेश्वर विनायक का आकार मोर के जैसा है, इस कारण इसे मोरगांव कहते हैं। त्रेता युग में सिंधु नाम के राक्षस सिंधुरासुर का वध करने के लिए भगवान गणेश ने मयूरेश्वर के रूप में 6 भुजाओं में श्वेत रंग धारण किया था और मोर को वाहन बनाया था। इस मंदिर का निर्माण काले पत्थर से हुआ है। दूर से देखने में मंदिर मस्जिद को चित्रित करता है, क्योंकि मुगल काल में मंदिरों को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए यहां मीनारों का निर्माण कराया गया था।

सिद्धटेक में सिद्धिविनायक

अहमदनगर जिले के काराट तालुका के सिद्धटेक में स्थित सिद्धिविनायक मंदिर आठ अष्टविनायक यात्रा का हिस्सा हैं। मान्यता है कि मधु-कैटभ नाम के दो असुरों का वध जब भगवान विष्णु नहीं कर पा रहे थे, तो उन्होंने शिव जी से मदद मांगी। इस पर भगवान शिव ने उन्हें युद्ध से पहले गणेश जी का आह्वान करने को कहा। विष्णु जी ने इसी स्थान पर भगवान गणेश की मूर्ति को स्थापित करके पूजा की। इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने वर्तमान सिद्धटेक मंदिर का निर्माण कराया। सिद्धिविनायक मंदिर एक पहाड़ी पर है, जिसका मुख उत्तर की ओर है। मंदिर के पश्चिम भाग में शंकर जी और देवी शिवी का छोटा सा मंदिर है।

पाली में बल्लालेश्वर अष्टविनायक मंदिर

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में अम्बा नदी के पास पाली गांव में स्थित बल्लालेश्वर विनायक मंदिर है। मान्यता है कि भगवान गणेश ने यहां ब्राह्मण वेश में बल्लाल को दर्शन दिया और हमेशा के लिए यहां वास करने का वरदान दिया। इसलिए इस मंदिर का नाम बल्लालेश्वर विनायक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मंदिर का मूल निर्माण लकड़ी द्वारा किया गया था। मंदिर परिसर में यूरोपियन शैली की विशाल घंटी है, जो पुर्तगालियों के खिलाफ जीत के बाद स्थापित की गई थी। दक्षिणायन के समय सूर्य उदय होने पर सूर्य की किरणें भगवान गणेश पर पड़ती हैं।

लेण्याद्री में गिरिजात्मज अष्टविनायक

गिरिजात्मक विनायक मंदिर का नाम भगवान गणेश की माता पार्वती के नाम पर पड़ा है जो कि पुणे जिले के जुन्नार तालुका में स्थित है। इस गणेश मंदिर के दर्शन के लिए भक्तों को 307 सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ी पर जाना होता है।यह वही स्थान है, जहां माता पार्वती ने गणेश जी की मूर्ति को आकार दिया और मिट्टी की मूर्ति जीवित हो गई। यहां गणपति जी की मूर्ति पहाड़ में स्वयं प्रकट हुई। दक्षिण की ओर मुख वाला यह गणपति मंदिर अठारह गुफाओं की श्रृंखला में आठवीं गुफा पर स्थित है। पुणे हवाई अड्डे से 97 किमी और मुंबई से 156 किमी दूरी पर है। गिरिजात्मज गणपति से सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन 96 किमी दूर पुणे रेलवे स्टेशन है।

थेऊर में चिंतामणी विनायक मंदिर

चिंतामणि विनायक मंदिर पुणे जिले के हवेली तालुका के थेऊर में स्थित है। इस मंदिर के पास तीन नदियां मूला नदी, मुथा नदी और भीमा नदी का संगम है।

गणासुर नाम का क्रूर राजा था, जिसे स्वर्ग, मृत्युलोक और पाताल लोक पर राज करने का वरदान प्राप्त था। उसने कपिल मुनि से इच्छापूर्ति वाले चिंतामणि रत्न को छीन लिया था। कपिल मुनि के आह्वान पर भगवान गणेश ने गणासुर का वध कर चिंतामणि वापस प्राप्ति की और कपिल मुनि ने गणपति को वहीं वास करने की प्रार्थना की। इस पर विनायक ने स्वयंभू प्रतिमा में वहीं वास किया।

पुणे हवाई अड्डे से चिंतामणि विनायक मंदिर 18 किमी दूर है और रेलवे स्टेशन 22 किमी दूर है। आगे का सफर टैक्सी, बस के जरिए कर सकते हैं।

ओझर में स्थित विघ्नेश्वर मंदिर

विघ्नेश्वर गणपति मंदिर अपने सोने के कलश के लिए और दीपमाला यानी पत्थर के खंभे के लिए प्रसिद्ध है। सभी अष्टविनायक मंदिरों में से विघ्नेश्वर मंदिर इकलौता है, जहां सोने का कलश है। यह मंदिर महाराष्ट्र के ओझर में स्थित है। ओझर पहुंचने के लिए पुणे से 85 किमी का सफर तय करना पड़ता है।

राजनांदगांव का महागणपति मंदिर

रंजनगांव का श्री महागणपति मंदिर पुणे के पास स्थित अष्टविनायक मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण नौंवी या दसवीं शताब्दी में कराया गया था। मंदिर पेशवा के शासन में बनाया हुआ लगता है। कहते हैं कि माधवराव पेशवा ने मंदिर के बेसमेंट में गणपति की मूर्ति रखने के लिए कमरे का निर्माण कराया। बाद में इंदौर के सरदार ने इसका पुनर्निर्माण कराया।

महड में वरदविनायक अष्टविनायक

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित महाड़ शहर है। मुंबई से 63 किमी और पुणे से 85 किमी दूर महाड गणपति मुंबई स्थित है। इस मंदिर का नाम वरद विनायक मंदिर है, जो कि 1725 में पेशवा सुभेदार रामजी महादेव बिवलकर द्वारा बनवाया गया था। पेशवा ने गणेश जी का यह मंदिर गांव को उपहार में दिया था। मंदिर झील के किनारे है, जहां से मूर्ति की खोज की गई और मूर्ति को स्थापित कर मंदिर का निर्माण हुआ। वहीं इस मंदिर को लेकर एक मान्यता है कि यहां दीपक 1892 से लगातार जल रहा है।